लड़कियों की मांग पर उड़ाते थे छक्के, लोग कहते थे अहंकारी, भारत के सबसे हैंडसम का एटीट्यूड ही अलग था
सिद्धार्थ चौधरी (नई दिल्ली): इसमें कोई शक नहीं कि सबकॉन्टिनेंट के क्रिकेटर्स में सलीम दुर्रानी सबसे ज्यादा हैंडसम थे। कुछ खिलाड़ियों की तरह वह फिल्मों में भी गए, लेकिन अभिनय उनके बस की चीज नहीं थी। यह बात 1973 में रिलीज हुई फिल्म ‘चरित्र’ को देखकर समझ आ जाती है। हालांकि दुर्रानी क्रिकेटर बेजोड़ थे। काबुल और कराची के बीच कहीं, खुले आसमान के नीचे उनका जन्म हुआ। Gulu Ezekiel ने अपनी किताब ‘सलीम दुर्रानी : द प्रिंस ऑफ क्रिकेटर्स’ में उन्हें किस्मत का सच्चा खिलाड़ी कहा है।
नवानगर में बड़े हुए
दुर्रानी के पिता अजीज खान भी एक क्रिकेटर और कोच थे। उन्होंने अविभाजित भारत के लिए एक अनाधिकारिक टेस्ट मैच खेला था। बाद में वह कराची में बस गए। सलीम दुर्रानी अपनी मां के साथ गुजरात के जामनगर में बड़े हुए, जिसे तब नवानगर के नाम से जाना जाता था। नवानगर को क्रिकेट की दुनिया का काशी कहा जाता है। मेरा मानना है कि रणजीत सिंह ने यहीं पर लेग ग्लांस का आविष्कार किया। यहीं पर उनके भतीजे दिलीप सिंह ने अपने बैकफुट को निखारा और यहीं पर वीनू मांकड़ ने चाइनामैन गेंदबाजी में महारत हासिल की। कुछ पीढ़ियों के बाद यहीं पर वर्तमान जाम साहब, अजय जडेजा ने वही शानदार शैली अपनाई और 1996 के विश्वकप में पाकिस्तान के खिलाफ केवल 25 गेंदों पर 45 रन बना डाले।
वेस्टइंडीज का सामना
Gulu Ezekiel ने सलीम दुर्रानी के बारे में कई कहानियां साझा की हैं और उनमें से एक 1962 में उनके पहले वेस्टइंडीज दौरे की है। तब वेस्ले हॉल, लांस गिब्स और गैरी सोबर्स जैसे गेंदबाजों के सामने सलीम दुर्रानी ने खुद को बैटिंग में प्रमोट किया और करियर का पहला शतक जड़ा। यह पारी तब आई, जब चार्ली ग्रिफिथ की एक घातक बाउंसर ने भारतीय कप्तान नारी कॉन्ट्रैक्टर को घायल करके कोमा में पहुंचा दिया था। सलीम दुर्रानी को देखकर बाकी भारतीय बैटर्स का खोया आत्मविश्वास लौट आया। इसी तरह, 1971 में वह अपने करियर के आखिरी दौर में थे। तब उन्होंने अजीत वाडेकर से वादा किया कि वह अगले दिन गैरी सोबर्स और क्लाइव लॉयड को आउट कर देंगे। उन्होंने ऐसा करके भी दिखाया। इस प्रदर्शन ने ऐतिहासिक शृंखला विजय की नींव रखी।
गेंदबाजी पर गर्व
सलीम दुर्रानी का अंदाज खास था। वह दर्शकों की मांग पर सिक्स मारा करते थे, खासकर महिलाओं के कहने पर। लेकिन, उन्हें सबसे ज्यादा गर्व था अपनी लेफ्ट आर्म ऑर्थोडॉक्स बोलिंग पर। कहा जाता था कि वह अपनी बोलिंग में इतने सटीक थे कि अगर पिच पर गुड लेंथ वाली जगह पर एक रुपये का सिक्का रखा जाता, तो वह एक ओवर में 6 बार गेंद को वहीं पर टप्पा करा सकते थे। वरिष्ठ पत्रकार विजय लोकपल्ली ने सलीम दुर्रानी को दिल्ली के सॉनेट क्लब के नेट्स पर गेंदबाजी करते हुए देखने का जिक्र किया है। तब दुर्रानी 60 बरस के हो गए थे। इसके बाद भी उनकी गेंदों ने क्लब के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज को छका दिया।
मूडी कलाकार
साल 1960 से 1965 के बीच सलीम दुर्रानी भारत के सबसे बेहतरीन ऑलराउंडर थे। हालांकि इसके बाद भी 1966 से 1971 तक वह टीम से बाहर रहे। कुछ लोगों का कहना है कि वह मूडी और अहंकारी थे। भारत के पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर रूसी मोदी ने उन्हें ‘बदलते मूड वाला कलाकार’ कहा था। यहां तक कि मंसूर अली खान पटौदी ने भी माना कि बतौर कप्तान वह दुर्रानी को सही तरीके से संभालने में असफल रहे। एक और कारण यह हो सकता है कि 1966 तक बिशन सिंह बेदी ने अपना डेब्यू कर लिया था और पटौदी ने उन्हें बेहतर गेंदबाज माना। रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘द स्टेट्स ऑफ इंडियन क्रिकेट : एनेक्डोटल हिस्ट्रीज’ में एक किस्सा बताया है। यह 1970 के दशक की शुरुआत की बात है, बिशन सिंह बेदी लंबे स्पेल के बाद थक गए थे तो कप्तान वाडेकर ने गेंद सलीम दुर्रानी को थमाई। दुर्रानी ने गेंद वापस वाडेकर को फेंकते हुए कहा, ‘मैं चेंज बॉलर नहीं हूं।’
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