अलबत्ता, पीएमओ के दखल के बाद मध्य प्रदेश सरकार एक्शन मोड में आ गई। आनन-फानन में मुख्यमंत्री मोहन यादव के निर्देश पर कार्रवाई करते हुए शासन ने मामले में लापरवाही के लिए बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर और एसीएफ को निलंबित कर दिया, लेकिन कई उच्चाधिकारियों पर अभी भी कार्रवाई नहीं की गई है, जो हाथियों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार थे।
एपीसीसीएफ वन्य प्राणी एल. कृष्णमूर्ति ने बताया कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में छह विशेष दल बनाकर स्वस्थ हाथियों की मानीटरिंग कर रहे हैं। खितौली रेंज के बगदरा बीट में रेस्क्यू किए गए हाथी की वन्य-प्राणी चिकित्सकों द्वारा लगातार मानीटरिंग की जा रही है।
कृष्णमूर्ति ने बताया कि मानव-हाथी द्वंद एवं वन्य-प्राणी प्रबंधन के लिए हाथियों के मूवमेंट क्षेत्रों से लगे गांवों में मुनादी कराई जा रही है। साथ ही प्रबंधन को मजबूत करने के लिए बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में मुख्य वन संरक्षक शहडोल द्वारा 35 स्टाफ की ड्यूटी लगाई गई है।
सोमवार तक सभी मृत हाथियों के बिसरा एवं पानी के नमूने आईबीआरआई जबलपुर, एसडब्यू एफएच जबलपुर और फारेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला सागर भेजे जा चुके हैं। मिट्टी और हाथियों द्वारा खाई गई फसल के नमूने भी लिए गए हैं, जो विश्लेषण के लिए जेएनकेवीवी जबलपुर भेजे गए हैं।
विस्तृत लैब परीक्षण रिपोर्ट आने के बाद ही हाथियों की मृत्यु के कारणों का पता लग सकेगा। शासन के निर्णय अनुसार एसआईटी और एसटीएसएफ की टीमें हाथियों की मृत्यु के मामले के सभी संभावित पहलुओं पर लगातार जांच कर रही है।
मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने सोमवार को कहा कि अब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, दोनों मिलकर हाथियों का प्रबंधन करेंगे। इसके लिए छत्तीसगढ़ से बड़े समूह में आने वाले हाथियों की सूचना के आदान-प्रदान और उनके प्रबंधन के संबंध में कार्य योजना बनाने पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के साथ विचार-विमर्श किया जाएगा। डा. यादव ने सोमवार को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय तथा प्रदेशवासियों को राज्योत्सव की बधाई और शुभकामनाएं देते हुए यह बात कही।
इस बीच सामने आया है कि बांधवगढ़ में स्थानीय ग्रामीणों ने हाथियों की चिंघाड़ने की आवाजें सुनकर घटनास्थल पर पहुंचने के बाद इसकी सूचना नजदीकी वन चौकी और उच्चाधिकारियों को दे दी थी, लेकिन घंटों बाद भी अधिकारी घटना स्थल पर नहीं पहुंचे। काफी देर बाद वन अमले ने पहुंचकर उच्चाधिकारियों को वस्तुस्थिति से अवगत कराया, तब जाकर अधिकारियों ने हाथियों की सुध ली।
पहले तो वन मुख्यालय में बैठे अधिकारी लापरवाही बरतते रहे, लेकिन हाथियों की हालत ज्यादा बिगड़ने के बाद हरकत में आए और बांधवगढ़ के लिए रवाना हुए। माना जा रहा है कि यदि समय से हाथियों को उपचार मिल जाता तो इतने हाथियों की मौत न होती।