मुर्गी शेड निर्माण सकारात्मक बदलाव और सामुदायिक विकास का प्रेरक उदाहरण

रायपुर। ग्रामीण परिवेश में आजीविका के विविध आयामों को सुदृढ़ करने के लिए शासन द्वारा अनेक योजनाएं क्रियान्वित की जाती हैं। इन योजनाओं का वास्तविक प्रभाव तब दिखाई देता है जब कोई ग्रामसभा, पंचायत और स्थानीय महिला स्व-सहायता समूह मिलकर योजनाओं को धरातल पर सफलता के साथ उतारते हैं। सारंगपुरी ग्राम पंचायत में निर्मित मुर्गी शेड इसी सकारात्मक बदलाव और सामुदायिक विकास का एक प्रेरक उदाहरण है।

वित्तीय वर्ष 2020-21 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना एवं जिला खनिज न्यास निधि (डी.एम.एफ.) के अभिसरण मद से स्वीकृत 5.12 लाख रुपये की लागत से तैयार यह मुर्गी शेड आज ग्राम की महिलाओं की आर्थिक मजबूती का आधार बन चुका है। जहां मनरेगा के 2.08 लाख और डीएमएफ के 3.04 लाख रुपये के संयुक्त निवेश ने न केवल एक उपयोगी ढांचा खड़ा किया बल्कि महिलाओं के लिए स्थायी आय के मार्ग भी प्रशस्त किए। इस कार्य की एजेंसी ग्राम पंचायत सारंगपुरी थी और कार्यरत समूह था जय मां कर्मा स्व-सहायता समूह, जिसमें कुल 04 महिला सदस्य शामिल हैं। इन चारों महिलाओं ने न केवल इस मुर्गी शेड की नींव रखी बल्कि स्वयं की मेहनत, सहयोग और समर्पण से इसे आज एक ऐसे आर्थिक केंद्र में बदल दिया जो परिवारों और समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

सारंगपुरी एक शांत, श्रमप्रधान और कृषि-प्रधान ग्राम है। यहां अधिकांश परिवार कृषि, मजदूरी और पारंपरिक कार्यों पर निर्भर रहे हैं। कोरोना काल के पश्चात आर्थिक चुनौतियां और भी बढ़ गई थी। महिलाओं को घर के भीतर रहते हुए किसी स्थायी आय के साधन की विशेष आवश्यकता महसूस होने लगी। उसी समय ग्राम पंचायत ने निर्णय लिया कि आजीविका संवर्धन हेतु महिला स्व-सहायता समूहों को केंद्र में रखकर कोई ऐसा कार्य किया जाए जो आर्थिक रूप से लाभकारी होने के साथ-साथ समूह को आत्मनिर्भर भी बनाए।

मनरेगा से प्राप्त राशि और डीएमएफ से आए अभिसरण फंड के माध्यम से मुर्गी शेड निर्माण कार्य को स्वीकृति मिली। ग्राम पंचायत के मार्गदर्शन में जय मां कर्मा स्व-सहायता समूह को मुर्गी पालन का प्रशिक्षण दिया गया। समूह की महिलाएं पहले इस क्षेत्र में अनुभवी नहीं थी  लेकिन सीखने की ललक और सफल होने की इच्छा ने उन्हें इस कार्य से गहराई से जोड़ दिया। मुर्गी शेड के निर्माण कार्य में ही समूह की महिलाओं ने सक्रिय सहभागिता निभाई। शेड का ढांचा वैज्ञानिक पद्धति से बनाया गया जिसमें वेंटिलेशन, तापमान नियंत्रण और व्यवस्थित व्यवस्था का ध्यान रखा गया। निर्माण पूर्ण होने के बाद समूह को प्रारंभिक चूजे, दाना, दवाइयां और आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई गई। धीरे-धीरे यह मुर्गी शेड एक संपूर्ण लाइवलीहुड सेंटर में बदलने लगा। समूह की महिलाएं रोज सुबह शेड की सफाई करती, चूजों को समय पर दाना-पानी देती, स्वास्थ्य देखभाल करती और बाजार में बिक्री हेतु तैयार माल को व्यवस्थित रखती। इस कार्य ने उन्हें न केवल आजीविका का नया साधन दिया  टीमवर्क और प्रबंधन कौशल भी सिखाया।

मुर्गी पालन कार्य के शुरू होते ही कुछ महीनों बाद समूह को इसकी पहली आय प्राप्त हुई। धीरे-धीरे बिक्री बढ़ती गई और स्थानीय बाजार में इनकी मुर्गियों की अच्छी मांग बनने लगी। अब तक समूह की महिलाओं को कुल लगभग 1.12 लाख रुपये की आय हो चुकी है। यह राशि चार सदस्यों में बांटी गई और हर महिला को अपनी आय का हिस्सा मिला। यह आय उनके जीवन में छोटे-छोटे लेकिन महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आयी। समूह की महिलाओं ने इस आय का उपयोग केवल व्यक्तिगत खर्चों में नहीं  अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने में भी किया। किसी ने अपने बच्चे की स्कूल फीस भरी।

किसी ने राशन और घरेलू जरूरतों को पूरा किया। किसी ने चिकित्सा व्यय का प्रबंध किया तो किसी ने बचत खाते में राशि जमा करना शुरू किया। इन महिलाओं के लिए यह केवल पैसा नहीं था यह आत्म-सम्मान की कमाई थी। उन्हें पहली बार महसूस हुआ कि वे भी घर में आर्थिक योगदान दे सकती हैं।

इस कार्य का सबसे बड़ा प्रभाव आर्थिक नहीं  सामाजिक था। जो महिलाएं पहले घर की सीमित दुनिया में ही सीमित थी  वे अब निर्णय लेने, प्रबंधन करने और अपने कार्यों को योजनाबद्ध तरीके से करने में सक्षम हो गई। जय मां कर्मा स्व-सहायता समूह की महिलाओं में आत्मविश्वास का स्तर बढ़ा। वे अब पंचायत बैठकों में अपनी राय रखती हैं। वे समूह गतिविधियों में नेतृत्व की भूमिका निभाती हैं। वे अन्य महिलाओं को भी आजीविका के कार्यों से जुड़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं। यह मुर्गी शेड उनके जीवन में आत्मनिर्भरता, आर्थिक मजबूती और सामाजिक सम्मान का आधार बना।

ग्राम पंचायत सारंगपुरी ने पारदर्शी और सुचारू तरीके से मनरेगा तथा डीएमएफ के धन का उपयोग किया। इससे यह साबित होता है कि यदि पंचायत, प्रशासन और महिला समूह एक साथ मिलकर कार्य करें तो छोटे-छोटे कार्य भी बड़े परिणाम दे सकते हैं। यह अभिसरण आधारित मॉडल अन्य ग्राम पंचायतों के लिए भी प्रेरणादायक है, क्योंकि

मनरेगा का उपयोग संरचना निर्माण में, डीएमएफ का उपयोग संसाधन उपलब्ध कराने में एवं महिला समूहों की मेहनत का उपयोग प्रबंधन और संचालन में किया गया जो एक टिकाऊ आजीविका मॉडल प्रस्तुत करता है।

महिलाओं ने अपनी क्षमता पहचानी और यह महसूस किया कि सही सहयोग और मार्गदर्शन मिले तो गांव में भी रोजगार के बेहतरीन अवसर विकसित किए जा सकते हैं। प्रतिदिन एक साथ कार्य करने से समूह के सदस्यों में विश्वास और सहयोग की भावना बढ़ी।परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। आय बढ़ने से परिवारों में आर्थिक स्थिरता आई और घरेलू जरूरतें सहजता से पूरी होने लगीं। सारंगपुरी के अन्य महिला समूह भी अब मुर्गी पालन, बकरी पालन, मशरूम उत्पादन आदि कार्यों की ओर रुचि दिखा रहे हैं।

जय माँ कर्मा स्व-सहायता समूह की सफलता केवल सरकारी योजना की देन नहीं हैै। यह चार महिलाओं की मेहनत, उनके सामूहिक प्रयास और ग्राम पंचायत के सहयोग का सुंदर परिणाम है।

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