दतिया में मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (SIR-2026) को लेकर कलेक्टर कार्यालय द्वारा जारी आदेश ने विवाद खड़ा कर दिया है। आदेश के अनुसार कई बीएलओ के साथ सहयोगी नियुक्त किए गए हैं, जिनमें कई भाजपा पदाधिकारियों और पूर्व मंडल अध्यक्षों के नाम शामिल हैं।
इस आदेश के बाद प्रशासनिक निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो गए हैं, क्योंकि मतदाता सूची पुनरीक्षण जैसी संवेदनशील प्रक्रिया में सीधे राजनीतिक पदाधिकारियों की भागीदारी को विपक्ष ने “लोकतंत्र पर हमला” बताया है।
कांग्रेस का आरोप: भाजपा SIR को पार्टी एजेंडा बनाने में जुटी
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इस आदेश को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के बाद अब प्रशासन भी सत्ता और संगठन की खुली कठपुतली की तरह नाचता दिखाई दे रहा है। SIR को संवैधानिक प्रक्रिया बताया जाता है, लेकिन असलियत यह है कि भाजपा सरकार हर संवैधानिक व्यवस्था को अपने राजनीतिक एजेंडे का औजार बना चुकी है। बीएलओ के साथ भाजपा पदाधिकारियों की नियुक्ति—लोकतंत्र का खुला अपमान है। कांग्रेस इसे कामयाब नहीं होने देगी।”
पटवारी ने दावा किया कि भाजपा मतदाता सूची को प्रभावित करने और संगठन के हित में उपयोग करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस हर मतदाता के अधिकार की रक्षा और मतदाता सूची की शुचिता के लिए “सजग और संघर्षरत” रहेगी।
कलेक्टर के आदेश में क्या कहा गया?
23 नवंबर को जारी आदेश में साफ लिखा गया है कि SIR-2026 के तहत बीएलओ को मतगणना, सत्यापन और फील्ड कार्य में सहयोग के लिए “सहयोगी” नियुक्त किए जाते हैं। सूची में दर्ज कई नाम भाजपा संगठन से जुड़े होने के कारण विवाद गहरा गया है।
क्यों उठे सवाल?
- मतदाता सूची से जुड़े कार्य स्वभाव से पूरी तरह गैर-राजनीतिक होने चाहिए।
- सहयोगियों के रूप में राजनीतिक पदाधिकारियों की नियुक्ति चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर प्रश्न खड़े करती है।
- विपक्ष को आशंका है कि इसका उपयोग मतदाता सूची संशोधन में पक्षपातपूर्ण लाभ लेने के लिए किया जा सकता है।
- वे बीएलओ, जिनके साथ भाजपा पदाधिकारियों को ‘सहयोगी’ बनाया गया।