तेल अवीव: प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार ने भारत में सदियों से रह रहे यहूदी जनजातियों को इजरायल में बसाने की मंजूरी दे दी है। बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार ने रविवार को उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत इजरायल साल 2030 तक बेनी मेनाशे समुदाय के करीब 5800 सदस्यों को वापस ले जाएगा। ये समुदाय सैकड़ों सालों से भारत के मिजोरम और मणिपुर राज्यों में रह रहे है। अब इन लोगों को धीरे-धीरे उत्तरी इजरायल के गैलिली इलाके में बसाने को मंजूरी मिली है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस फैसले को "जरूरी और जायोनी" बताया और कहा कि इससे इजरायल का उत्तरी इलाका मजबूत होगा।
भारत में यहूदी जनजाति का मिलना और उनकी इजरायल वापसी कई लोगों के लिए काफी दिलचस्पी भरा और चौंकाने वाला है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पठानों, यानि पश्तून जनजाति के डीएनए भी इजरायल से मिल रहे हैं और इसको लेकर रिसर्च भी किए जा रहे हैं। दरअसल, इजरायल के इतिहास में खोई हुई जनजातियों को लेकर हमेशा से रिसर्च होते रहे हैं, ताकि उन्हें खोजा जा सके। 10 ऐसे जनजातियों के बारे में माना जाता है जो खो गई हैं और इजरायल उन्हें दुनियाभर में तलाश रहा है।
पाकिस्तान-अफगानिस्तान के पठानों का इजरायल से संबंध?
इजरायल के खोई हुई जनजातियों को लेकर सबसे ज्यादा दिलचस्पी पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पश्तून, जिन्हें पठान भी कहा जाता है, उनको लेकर है। कई पश्तून जनजातियों के नाम और उनकी मौखिक परंपराएं इजरायली जनजातियों से चौंकाने वाली समानताएं दिखाती हैं। उदाहरण के तौर पर यूसुफजई (यूसुफ यानी जोसेफ के पुत्र) और अफरीदी (कथित रूप से एप्रैम से जुड़ा हुआ)। सदियों से कुछ मुस्लिम, यहूदी और ईसाई विद्वानों ने भी अपने ग्रंथों में पश्तूनों को खोई हुई इजरायली जनजातियों से संबंधित बताया है। दिलचस्प बात यह है कि जबकि उनके नाम, रीति–रिवाज और जनजातीय ढांचे इजरायल से उनके कनेक्शन को लेकर इशारा करते हैं, लेकिन पश्तून इस विचार को खारिज करते हैं।
लेकिन फिर भी उनके भोजन के नियम, विवाह की रस्मों (कैनोपी प्रथा), सब्त जैसे दिन पर मोमबत्ती जलाने की परंपरा और कुछ मामलों में कपड़े पहने की समानताएं इस संभावना को लगातार जीवित रखती हैं कि उनकी जड़ें कहीं न कहीं प्राचीन इजरायल से जुड़ी हो सकती हैं। लेकिन आधुनिक पश्तून आबादी अपनी धार्मिक मुस्लिम पहचान को ज्यादा महत्व देता है और इजरायली जनजाति होने के विचार को सिरे से नकारता है। इसके बावजूद, इस समुदाय की ऐतिहासिक जड़ों को समझने के लिए समय-समय पर आनुवंशिक रिसर्च करवाए गये हैं, लेकिन अभी तक कोई भी वैज्ञानिक निष्कर्ष न तो इस थ्योरी को साबित कर पाए हैं और न पूरी तरह खारिज कर सके हैं।