डॉ. रश्मि…पहले नींद की दवा, फिर एनेस्थीसिया किया इंजेक्ट:​​​​​​​सुसाइड अटेंप्ट से पहले एम्स में हुआ था बर्थडे सेलीब्रेट, डीन समेत 5 डॉक्टर फैक्ट फाइंडिंग कमेटी में

एम्स भोपाल के ट्रॉमा एंड इमरजेंसी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रश्मि वर्मा द्वारा आत्महत्या के प्रयास का मामला अब संस्थागत जांच के दायरे में आ गया है। एम्स प्रबंधन ने डीन एकेडेमिक और मेडिकल सुपरिटेंडेंट समेत पांच वरिष्ठ अधिकारियों की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित कर दी है, जिसे पूरे घटनाक्रम, विभागीय कार्यसंस्कृति और संभावित वर्क प्लेस स्ट्रेस की जांच सौंपी गई है।

जांच के साथ-साथ ट्रॉमा एंड इमरजेंसी विभाग का स्ट्रक्चर बदल कर, उसे दो अलग सेंटर में विभाजित किया गया है। जो एक सप्ताह में अलग-अलग संचालित होने लगेगा। मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय स्तर से भी निगरानी शुरू हो गई है।

पहले नींद की दवा, फिर एनेस्थीसिया किया इंजेक्ट इलाज के दौरान सामने आए तथ्यों ने डॉक्टरों और प्रबंधन को भी चौंका दिया है। खुलासा हुआ है कि डॉ. रश्मि ने केवल एनेस्थीसिया नहीं, बल्कि उससे पहले नींद की दवा और फिर मांसपेशियों को पैरालाइज करने वाली हाई-डोज एनेस्थीसिया ड्रग इंजेक्ट की थी। इससे उनका दिल करीब सात मिनट तक बंद रहा और दिमाग को ऑक्सीजन नहीं मिल पाई।

अब तक की जांच में सामने आया कि डॉ. रश्मि ने सबसे पहले नींद की दवा मिडाजोलम का पूरा वॉयल केन्युला के जरिए सीधे नस में इंजेक्ट किया। इसके बाद उन्होंने एनेस्थीसिया ड्रग वेक्यूरोनियम इंजेक्ट किया, जो मांसपेशियों को पूरी तरह रिलैक्स कर देता है। दोनों ही दवाएं हाई डोज में थीं।

नींद की दवा के असर से वे बेहोश हो गईं और वेक्यूरोनियम के कारण शरीर की मांसपेशियां, यहां तक कि दिल और सांस से जुड़ी मसल्स भी पैरालाइज हो गईं। नतीजतन, दिल की धड़कन रुक गई और फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया। डॉक्टरों के अनुसार, करीब सात मिनट तक दिमाग को ऑक्सीजन नहीं मिली, जिससे ब्रेन सेल्स को भारी नुकसान पहुंचा।

नर्स की नजर पड़ी, तभी बची जान एम्स के एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब डॉ. रश्मि यह प्रक्रिया कर रही थीं, उसी दौरान घर में ही उनके पति डॉ. मनमोहन शाक्य के क्लिनिक में मौजूद नर्स की नजर उन पर पड़ी। नर्स को स्थिति संदिग्ध लगी और उसने तुरंत डॉ. शाक्य को जानकारी दी। इसके बाद डॉ. शाक्य बिना देरी किए डॉ. रश्मि को लेकर एम्स भोपाल पहुंचे। इमरजेंसी में मौजूद डॉक्टरों ने तत्काल CPR शुरू किया और तीन बार रेससिटेशन के बाद दिल की धड़कन वापस लाई जा सकी।

क्रिटिकल हालत में डॉ. रश्मि, वेंटिलेटर पर इलाज जारी एम्स भोपाल के सूत्रों के अनुसार, डॉ. रश्मि की स्थिति फिलहाल क्रिटिकल बनी हुई है। वे पूरी तरह वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं और डॉक्टर लगातार न्यूरोलॉजिकल रिस्पॉन्स पर नजर बनाए हुए हैं। रविवार को कराई गई एमआरआई रिपोर्ट में उनके मस्तिष्क में ग्लोबल हाइपोक्सिया के संकेत मिले हैं, यानी दिमाग को लंबे समय तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाई। डॉक्टरों का कहना है कि इस तरह की स्थिति कार्डियक अरेस्ट के बाद सामने आती है और इसका असर लंबे समय तक रह सकता है।=

एक दिन पहले हुआ था बर्थडे सेलिब्रेट इस पूरे मामले में एक भावनात्मक पहलू भी सामने आया है। एम्स एंड ट्रॉमा इमरजेंसी की एक अन्य चिकित्सक ने बताया कि बुधवार को विभाग में उनका बर्थडे सेलिब्रेशन भी हुआ था। हालांकि, उनके बर्थडे की डेट 7 दिसंबर थी। लेकिन, जब विभाग के डॉक्टरों को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने तुरंत केक मंगवाया था। तब किसी को इस बात का अंदेशा नहीं था कि डॉ. रश्मि ड्यूटी से लौटने के बाद अगले दिन घर पर यह कदम उठा लेंगी।

साथी डॉक्टरों के अनुसार, वे हमेशा से एनर्जेटिक, प्रोफेशनल और जिम्मेदार फैकल्टी के रूप में जानी जाती हैं। वे बेसिक लाइफ सपोर्ट (BLS) प्रोग्राम, नर्सिंग ट्रेनिंग सेशन (TEM) और अन्य शैक्षणिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। ऐसे में उनका यह कदम सभी को झकझोर देने वाला है।

एम्स में बहस.. टॉक्सिक माहौल या निजी कारण डॉ. रश्मि के आत्महत्या प्रयास को लेकर एम्स में दो तरह की चर्चाएं चल रही हैं। एक वर्ग का कहना है कि यह उनका निजी निर्णय था और इसके पीछे व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं। वहीं, दूसरा वर्ग ट्रॉमा एंड इमरजेंसी विभाग के कथित टॉक्सिक वर्क कल्चर को जिम्मेदार मान रहा है। पहले भी विभाग में तनाव, नोटिस और आपसी मतभेदों की बातें सामने आ चुकी हैं। यही वजह है कि एम्स प्रबंधन इस मामले को हल्के में लेने के मूड में नहीं है।

फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित, जल्द रिपोर्ट के निर्देश रविवार को छुट्टी के दिन एम्स प्रबंधन और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की आपात बैठक बुलाई गई। इस बैठक में पांच सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के गठन के आदेश जारी किए गए। इस कमेटी को पूरे घटनाक्रम, कार्यस्थल के माहौल और अन्य संबंधित तथ्यों की जांच कर जल्द से जल्द रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए गए हैं।

हालांकि, फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के गठन के बाद ही डॉक्टरों के इंटरनल ग्रुप्स में इसका विरोध शुरू हो गया है। कई डॉक्टरों का कहना है कि यदि जांच निष्पक्ष करनी है तो कमेटी में किसी बाहरी विशेषज्ञ या स्वतंत्र सदस्य को शामिल करना जरूरी है। उनका तर्क है कि पूरी तरह आंतरिक कमेटी पर निष्पक्षता को लेकर सवाल उठ सकते हैं।

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