नई दिल्ली: जब 11 महीने के रेंट एग्रीमेंट की अवधि समाप्त होने पर किरायेदार प्रॉपर्टी खाली करने से मना कर देता है तो मकान मालिक अक्सर हताशा और कानूनी गलती के डर के बीच फंस जाते हैं। हालांकि, कानून ज्यादातर ऐसी स्थितियों में प्रॉपर्टी मालिकों के पक्ष में होता है। लेकिन, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि एक भी गलत कदम, जैसे बिजली-पानी काटना या जबरन ताला बदलना, स्थिति को पूरी तरह से पलट सकता है। ऐसे में मकान मालिकों को कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। इसमें सबसे पहले एक वकील के जरिये औपचारिक कानूनी नोटिस भेजना शामिल है। अगर किरायेदार किराया देना जारी रखता है और मकान मालिक उसे स्वीकार कर लेता है तो यह एक महीने-दर-महीने की किरायेदारी मानी जा सकती है। इसके लिए अलग से 15 दिन का नोटिस देना होगा। ऑनलाइन रेंट पेमेंट की वजह से भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसलिए ऐसे भुगतानों को तुरंत वापस करना और लिखित में यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है कि किरायेदारी आगे नहीं बढ़ाई जा रही है। किसी भी विवाद में एक अच्छी तरह से तैयार किया गया रेंट एग्रीमेंट मकान मालिक के लिए सबसे मजबूत बचाव होता है।
कानूनी तौर पर जब एक निश्चित अवधि का रेंट एग्रीमेंट खत्म हो जाता है तो प्रॉपर्टी पर किराएदार का कब्जा भी खत्म हो जाता है। अगर कोई नया एग्रीमेंट नहीं होता है तो किराएदार को अनधिकृत माना जा सकता है। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि मकान मालिक अपनी मर्जी से कुछ भी कर सकता है। बिजली या पानी की सप्लाई बंद करना, ताले बदलना या किराएदार को जबरन बाहर निकालना गैरकानूनी है। ऐसा करने पर मकान मालिक पर आपराधिक मामला भी दर्ज हो सकता है।
क्या होना चाहिए पहला कदम?
वकीलों का कहना है कि ऐसे मामलों में पहला सही कदम एक वकील के जरिए औपचारिक कानूनी नोटिस भेजना है। इस नोटिस में साफ तौर पर लिखा होना चाहिए कि रेंट एग्रीमेंट खत्म हो गया है और किराएदार को एक उचित समय सीमा, आमतौर पर 15-30 दिनों के अंदर प्रॉपर्टी खाली करनी होगी। कई बार सिर्फ कानूनी नोटिस मिलने पर ही किराएदार प्रॉपर्टी खाली कर देते हैं। नोटिस में तय अवधि से ज्यादा रहने के लिए मुआवजे या नुकसान की मांग भी शामिल की जा सकती है।
किराया न करें स्वीकार
कानूनी विशेषज्ञ मकान मालिकों को यहां सावधानी बरतने की सलाह देते हैं। अगर एग्रीमेंट खत्म होने के बाद भी किराया मिलता रहता है तो उसे स्वीकार न करना किराएदार की स्थिति को काफी कमजोर कर देता है। अगर मकान मालिक लिखित में स्पष्ट रूप से बताता है कि एग्रीमेंट खत्म होने के कारण किराया स्वीकार नहीं किया जा रहा है तो यह साबित करने में मदद मिलती है कि किराएदार अनधिकृत है।
बहुत से मकान मालिक सोचते हैं कि क्या पुलिस ऐसे मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है जब किराएदार प्रॉपर्टी खाली करने से मना कर दे। इसका जवाब थोड़ा जटिल है। पुलिस अधिकारी आम तौर पर सिर्फ कब्जे को लेकर होने वाले सिविल विवादों में दखल नहीं देते हैं। हालांकि, अगर किराएदार मकान मालिक को धमकी देता है, प्रॉपर्टी पर जबरन कब्जा करता है या अगर एग्रीमेंट जाली या धोखाधड़ी वाला पाया जाता है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 441 और 447 के तहत आपराधिक अतिचार (क्रिमिनल ट्रेसपास) का मामला दर्ज किया जा सकता है।
ऑनलाइन रेंट पेमेंट के चलन ने एक और जटिलता जोड़ दी है। अगर एग्रीमेंट खत्म होने के बाद भी किराएदार डिजिटल तरीके से किराया भेजता रहता है तो उस भुगतान को स्वीकार करना जोखिम भरा हो सकता है। अदालतें ऐसे भुगतान को किराएदार के रुकने की सहमति मान सकती हैं। सबसे सुरक्षित तरीका यह है कि तुरंत उस राशि को वापस कर दिया जाए और व्हाट्सएप मैसेज, ईमेल या कानूनी नोटिस के माध्यम से यह स्पष्ट रूप से दर्ज किया जाए कि किराया इसलिए वापस किया जा रहा है क्योंकि किरायेदारी खत्म हो गई है और उसे आगे नहीं बढ़ाया जा रहा है।
चुप्पी से बचना चाहिए
अगर मकान मालिक ने एग्रीमेंट खत्म होने के बाद किराया स्वीकार कर लिया है तो भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। कानूनी विशेषज्ञ तुरंत ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 106 के तहत नोटिस भेजने की सलाह देते हैं। इसमें स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए कि किराया स्वीकार करने का मतलब यह नहीं है कि मकान मालिक किराएदार के रुकने के लिए सहमत है और मकान मालिक बेदखली की मांग करने का अधिकार सुरक्षित रखता है। जहां मकान मालिक ने लिखित में लगातार आपत्ति जताई है, वहां अदालतें अक्सर यह मान लेती हैं कि किराया केवल प्रॉपर्टी के इस्तेमाल के मुआवजे के तौर पर स्वीकार किया गया था, न कि किरायेदारी को बढ़ाने के तौर पर।
मकान मालिकों को हर कीमत पर चुप्पी से बचना चाहिए। बिना आपत्ति के किराया स्वीकार करते रहना, लिखित नोटिस न भेजना या कार्रवाई किए बिना महीनों बीत जाने देना, बेदखली के मामले को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। जैसे ही एग्रीमेंट खत्म होता है, मकान मालिक की स्थिति रिकॉर्ड पर आ जानी चाहिए, यह स्पष्ट होना चाहिए कि अब कोई किराया स्वीकार नहीं किया जाएगा और प्रॉपर्टी खाली की जानी चाहिए।