ओपेक को पीछे छोड़ चीन बना तेल का ‘किंग’, क्या कीमत तय करने की मिल गई चाबी?

नई दिल्ली: तेल के खेल में चीन नया किंग बनकर उभर रहा है। आम तौर पर तेल की दुनिया में यह माना जाता है कि OPEC+ जैसे बड़े तेल उत्पादक देशों का समूह ही तेल की कीमतों को तय करता है। वे उत्पादन घटाकर या बढ़ाकर अपनी मर्जी का दाम हासिल कर लेते हैं। लेकिन साल 2025 में इस पुरानी सोच को चुनौती मिली। चीन दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक है। उसने अपनी इस ताकत का इस्तेमाल करके तेल की कीमतों के लिए एक तरह से ‘फ्लोर’ (न्यूनतम स्तर) और ‘सीलिंग’ (अधिकतम स्तर) तय कर दी। उसने यह काम अपने तेल के भंडार में तेल डालने या निकालने के जरिए किया।

रॉयटर में प्रकाशित एक आर्टिकल के मुताबिक साल 2022 में OPEC+ ने तेल का उत्पादन घटाया था, जिससे कीमतें बढ़ीं। लेकिन जैसे ही उन्होंने अप्रैल 2025 में उत्पादन बढ़ाना शुरू किया, बढ़ी हुई कीमतें फिर से कम होने लगीं। अब, जब तेल की सप्लाई बहुत ज्यादा होने का खतरा मंडरा रहा है, OPEC+ ने अगले साल की पहली तिमाही में उत्पादन को स्थिर रखने का फैसला किया है। ऐसे में, इस अतिरिक्त तेल को खपाने की जिम्मेदारी चीन पर आ गई है।

भंडारण की जानकारी नहीं देता चीन

साल 2026 में चीन क्या करेगा, यह तेल बाजार के लिए सबसे बड़ा सवाल है। दूसरे देश अपनी रणनीति शायद बीजिंग के फैसलों को देखकर ही बनाएंगे। चीन अपनी रणनीतिक और व्यावसायिक तेल भंडारण की जानकारी सार्वजनिक नहीं करता है। इस वजह से यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि असल में कितना तेल बाजार में आ रहा है और जा रहा है। साथ ही, यह भी समझना कठिन हो जाता है कि चीन की नीतियां क्या होंगी। लेकिन साल 2025 में यह साफ था कि चीन अपनी घरेलू खपत और रिफाइन किए गए उत्पादों के निर्यात से ज्यादा तेल खरीद रहा था।

क्या है चीन की रणनीति

साल 2025 के पहले 11 महीनों में लगभग 980,000 बैरल प्रति दिन (bpd) अतिरिक्त तेल था। ऐसा इसलिए, क्योंकि कुल आयात और घरेलू उत्पादन 15.80 मिलियन bpd था, जबकि रिफाइनरियों में 14.82 मिलियन bpd तेल इस्तेमाल हुआ।यह अतिरिक्त तेल मार्च से जमा हो रहा था। इससे पहले जनवरी और फरवरी में रिफाइनरियों ने अपने भंडार से तेल निकाला था। उस समय इस्तेमाल हुआ तेल उपलब्ध तेल से लगभग 30,000 bpd ज्यादा था। अतिरिक्त तेल की मात्रा और तेल की कीमतों के बीच एक मजबूत संबंध देखा गया है। जब कीमतें गिरती हैं, तो चीन ज्यादा तेल खरीदता है और जब कीमतें बढ़ती हैं, तो वह खरीदना कम कर देता है।

साल 2026 का बड़ा सवाल

यह कहा जा सकता है कि 2025 की दूसरी छमाही में तेल की कीमतें एक सीमित दायरे में रहीं, जिसका मुख्य कारण चीन का भंडारण प्रवाह था। ब्रेंट की कीमतें 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास ही रहीं। साल 2026 के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या चीन कीमतें गिरने पर अतिरिक्त तेल खरीदना जारी रखेगा और इस तरह कीमतों को गिरने से रोकेगा?

चीन के पास पहले से कितना तेल जमा है, इसके अनुमान अलग-अलग हैं। यह अनुमान लगभग 1 बिलियन बैरल से लेकर 1.4 बिलियन बैरल तक है। चीन और भी भंडारण क्षमता बना रहा है। सिनोपेक और CNOOC जैसी सरकारी तेल कंपनियों ने 2025 और 2026 में 11 जगहों पर कम से कम 169 मिलियन बैरल की क्षमता जोड़ी है।

क्या चीन करेगा कीमत तय?

अगर बीजिंग इसी दर से रणनीतिक भंडार बढ़ाता रहा, तो इसका मतलब है कि साल 2026 में सप्लाई की अनुमानित अतिरिक्त मात्रा का एक बड़ा हिस्सा चीनी टैंकों में चला जाएगा। अगर ऐसा होता है, तो तेल की कीमतों को फिर से चीन द्वारा समर्थित एक न्यूनतम स्तर मिलेगा। साथ ही एक अधिकतम स्तर भी होगा, क्योंकि चीन कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ने पर आयात कम कर देगा। ऐसे में तेल की कीमतें गिर सकती हैं।

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