भोपाल। बदलते दौर में सिनेमा में कई बदलाव आए हैं। न केवल फिल्मों की समय अवधि कम हुई है, बल्कि बड़ी स्क्रीन से निकलकर सिनेमा ओटीटी (OTT) के रूप में दर्शकों के पास पहुंच गया है। फिल्मों की करिश्माई दुनिया के बजाय दर्शकों ने असल जिंदगी को चुना और पसंद किया।इन सबके बीच सिनेमा फिर भी एक चीज तलाश करता रहा, वह है वास्तविक सेट। फिल्म निर्माता-निर्देशकों की यह तलाश खत्म हुई मध्य प्रदेश में। यहां के नदी, पहाड़, जंगल, ऐतिहासिक स्थल और खासतौर पर सिनेमा फ्रेंडली लोग, सिनेमा को मध्य प्रदेश खींच लाए।
साउथ सिनेमा को भाया अपना MP, तीन साल में शूट हुए 200 से ज्यादा प्रोजेक्ट, अखंडा और पेन्नियन सेल्वन जैसी फिल्में यहीं हुई शूट
कुछ दशकों पहले जो फिल्में मध्य प्रदेश के बड़े शहरों जैसे भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, इंदौर में शूट हुआ करती थीं, वो अब छोटे कस्बों जैसे महेश्वर, चंदेरी, ओरछा से होती हुई सीहोर जिले के महोदिया, बमुलिया और धमनखेड़ा, छिंदवाड़ा जिले के चिमटीपुर जैसे गांवों तक पहुंच गई हैं।
नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर मप्र के इन गंतव्यों ने दक्षिण भारत की फिल्मों को सबसे ज्यादा आकर्षित किया है। इससे शूटिंग के दिन भी बढ़े हैं और सिनेमा पूरे प्रदेश में फैल गया है।
शूटिंग हब बन चुके मध्य प्रदेश में पिछले तीन सालों (वर्ष 2023 से 2025) में दो सौ से अधिक छोटे-बड़े प्रोजेक्ट शूट हुए हैं, जिनमें 20 से भी ज्यादा साउथ की बड़े बजट की फिल्में हैं।
राज्य ने अपनी विविध भौगोलिक स्थिति, ऐतिहासिक विरासत और फिल्म अनुकूल प्रशासनिक नीतियों के कारण दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग (तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम) को अपनी ओर आकर्षित किया है।
मप्र सरकार की फिल्म पर्यटन नीति 2020 ने निर्माताओं का काम आसान किया। फरवरी 2025 में अनुमोदित नई फिल्म पर्यटन संवर्धन नीति ने वित्तीय प्रोत्साहनों की सीमा को बढ़ाकर दस करोड़ रुपये तक कर दिया है। इस नीति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें दक्षिण भारतीय भाषाओं की फिल्मों के लिए दस प्रतिशत अतिरिक्त वित्तीय लाभ प्रस्तावित किया गया है।
वहीं सिगंल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम को लोक सेवा गारंटी अधिनियम में शामिल किया है। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि निर्माताओं को 15 कार्य दिवस के भीतर सभी आवश्यक अनमुतियां प्राप्त हो जाएं।
इसके अतिरिक्त मप्र पर्यटन के होटल में फिल्म क्रू के ठहरने पर 40 प्रतिशत की सीधी छूट प्रदान की जाती है। यह प्रविधान दक्षिण भारतीय फिल्मों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि उनकी निर्माण इकाईयां बहुत बड़ी होती हैं, जिनमें तीन सौ से अधिक सदस्य शामिल होते हैं।