मालगाड़ी या बैलगाड़ी... स्पीड बनी टेंशन, रेलवे की कमाई पर सीधा पड़ रहा असर
नई दिल्ली: संसदीय समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में मालगाड़ियों की धीमी रफ्तार पर चिंता जताई है। पिछले 11 सालों में मालगाड़ियों की औसत रफ्तार सिर्फ 25 किलोमीटर प्रति घंटा रही है। समिति का मानना है कि भारतीय रेल की कमाई बढ़ाने के लिए मालगाड़ियों की रफ्तार बढ़ाना बहुत जरूरी है। समिति ने 'कवच' सिस्टम के विस्तार की धीमी गति पर भी चिंता जाहिर की है। रेलवे के रिसर्च विंग को मिलने वाले फंड के इस्तेमाल न होने पर भी सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में यात्री सेवाओं से होने वाले कम मुनाफे पर भी ध्यान दिलाया गया है।
संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट 13 दिसंबर 2024 को संसद में पेश की। इस रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2013-24 में मालगाड़ियों की औसत रफ्तार सिर्फ 25.14 किलोमीटर प्रति घंटा रही। समिति को मालूम है कि भारतीय रेलवे दो डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) बना रहा है। एक पूर्वी DFC है जो लुधियाना से सोननगर तक (1,337 किमी) है। दूसरा पश्चिमी DFC है जो JNPT (मुंबई) से दादरी (1506 किमी) तक है। EDFC का काम पूरा हो गया है। WDFC पर वैतरणा से JNPT तक का 102 किमी का हिस्सा दिसंबर 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है।
रेलवे की कमाई का बड़ा जरिया हैं मालगाड़ी
भारतीय रेल की ज्यादातर कमाई मालगाड़ियों से होती है। 2023-24 में भारतीय रेल ने 1,68,293 करोड़ रुपये की कमाई की। 2024-25 में 1,80,000 करोड़ रुपये कमाने का लक्ष्य है। आंध्र प्रदेश के बीजेपी नेता सीएम रमेश की अध्यक्षता वाली इस समिति ने रेल मंत्रालय से नए DFC के काम में तेजी लाने का आग्रह किया है। समिति ने 'कवच' सिस्टम के विस्तार पर भी चिंता जताई है। 'कवच' एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है। समिति ने कहा कि इसका काम बहुत धीमी गति से चल रहा है।
पिछले महीने लोकसभा में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक सवाल के लिखित जवाब में बताया था कि 'कवच' का काम लगभग 3,000 रूट किमी पर चल रहा है। इन रूट्स पर ट्रैक के किनारे का काम लगभग 1081 रूट किमी पर पूरा हो चुका है। 'कवच' लोको पायलट को तय गति सीमा के अंदर ट्रेन चलाने में मदद करता है। अगर लोको पायलट ऐसा करने में विफल रहता है तो यह अपने आप ब्रेक लगा देता है। यह खराब मौसम में भी ट्रेनों को सुरक्षित रूप से चलाने में मदद करता है।
कम फंड का भी पूरा इस्तेमाल नहीं
समिति ने भारतीय रेलवे के रिसर्च विंग, रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन (RDSO) पर भी गौर किया। समिति ने चिंता जताई कि रेलवे रिसर्च के लिए आवंटित कम फंड का भी पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। समिति ने कहा, 'समिति ने पाया कि वित्त वर्ष 2024-25 के लिए रेलवे अनुसंधान के लिए बजट अनुमान केवल 72.01 करोड़ रुपये रखा गया है। इसके अलावा, यह अतिरिक्त चिंता का विषय है कि रेलवे पिछले दो वर्षों के दौरान अनुसंधान के लिए आवंटित सीमित धन का उपयोग करने में असमर्थ रहा है। 2022-23 में 107 करोड़ और 2023-24 में 66.52 करोड़ के संशोधित अनुमानों के मुकाबले वास्तविक खर्च 39.12 करोड़ और 28.34 करोड़ रुपये था।'
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