नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दवाओं की कीमतों में बड़ी कटौती का ऐलान किया है। माना जा रहा है कि इसका असर पूरी दुनिया के दवा बाजार पर पड़ेगा, जिसमें भारत का जेनेरिक दवाओं का निर्यात क्षेत्र भी शामिल है। अमेरिका अब दवाओं की कीमत तय करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुलना करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। अमेरिका और यूरोप की नौ बड़ी दवा कंपनियों ने दवाओं का कीमत कम करने और टैरिफ से बचने के लिए ट्रंप के साथ एक डील की है।
ट्रंप ने कहा कि अमेरिका में लोगों को अब महंगी दवा से छुटकारा मिलेगा। उन्होंने कहा, "आपको सबसे पसंदीदा देशों वाली कीमत मिलेगी।" यह घोषणा स्वास्थ्य क्षेत्र और कई बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में की गई। ट्रंप ने कहा कि दशकों से अमेरिकी नागरिकों को दुनिया में सबसे महंगी दवाएं खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उन्होंने दावा किया कि दवा कंपनियों ने कई प्रमुख दवाओं की कीमतों में भारी कटौती पर सहमति दी है। उनके अनुसार, कुछ दवाओं की कीमतें तीन सौ से लेकर सात सौ प्रतिशत तक घटाई जाएंगी।
भारत पर असर
ट्रंप ने यह भी कहा कि विदेशी सरकारों पर दवाओं की कीमतें कम करने का दबाव बनाने के लिए अमेरिका शुल्क यानी टैरिफ का इस्तेमाल करेगा। उन्होंने दावा किया कि जल्द ही अमेरिका में दवाओं की कीमतें विकसित देशों में सबसे कम स्तर पर होंगी और अमेरिका को दुनिया में कहीं भी मिलने वाली सबसे सस्ती कीमत मिलेगी। ट्रंप ने इस नीति को अमेरिका में ही दवा निर्माण बढ़ाने से भी जोड़ा। उन्होंने कहा कि कई कंपनियां अमेरिका आ रही हैं और वहां कारखाने लगा रही हैं।भारत पर इस घोषणा का असर पड़ सकता है। भारत दुनिया में जेनेरिक दवाओं का एक बड़ा उत्पादक है और अमेरिका को सस्ती दवाओं की आपूर्ति करने वाले प्रमुख देशों में शामिल है। खासकर लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों की दवाओं के लिए भारत यूएस में एक प्रमुख सप्लायर की भूमिका निभाता रहा है। भारत में दवाओं की कीमतें अक्सर दुनिया में सबसे कम मानी जाती हैं। इसी वजह से अमेरिका द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दवाओं की कीमत तय करने की किसी भी पहल पर भारतीय फार्मास्युटिकल एक्सपोर्टर्स करीबी नजर रखते हैं, क्योंकि अमेरिकी बाजार भारत के दवा उद्योग के लिए बेहद अहम है।
कौन-कौन कंपनियां हैं शामिल
अमेरिका में दवाओं की ऊंची कीमतों को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। दवा कंपनियां कहती हैं कि वे ऊंची कीमतें इसलिए रखती हैं ताकि उस पैसे को रिसर्च में इस्तेमाल किया जा सके। वहीं, दूसरी ओर लोग कहते हैं कि इन महंगी दवाओं का सारा बोझ आम जनता की जेब पर पड़ता है। ट्रंप के साथ डील करने वाली कंपनियों में Merck, Bristol Myers Squibb, Amgen, Gilead, GSK, Sanofi, Roche’s Genentech, Boehringer Ingelheim और Novartis शामिल हैं।