बेमेतरा। जिला बेमेतरा के विकासखण्ड साजा के ग्राम पंचायत भरदालोधी अंतर्गत ग्राम सोनपुरी के प्रगतिशील कृषक श्री पुरषोत्तम सिन्हा ने प्राकृतिक खेती के माध्यम से खेती की एक नई दिशा दिखाई है। कुल 03 एकड़ भूमि में खेती करने वाले श्री सिन्हा पिछले तीन वर्षों से प्राकृतिक एवं जैविक कृषि पद्धति को अपनाकर न केवल अपनी आय बढ़ा रहे हैं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता और जलवायु संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
प्राकृतिक खेती: स्वदेशी संसाधनों से आत्मनिर्भरता की ओर :
प्राकृतिक खेती एक रसायन-मुक्त पारंपरिक कृषि पद्धति है, जो स्थानीय जैव विविधता और पर्यावरणीय संतुलन पर आधारित है। इसका उद्देश्य बाहर से खरीदे जाने वाले रासायनिक इनपुट्स पर निर्भरता घटाकर स्थानीय संसाधनों जैसे गोबर, गौमूत्र, नीम, गुड़, बेसन आदि का उपयोग बढ़ाना है। श्री पुरषोत्तम सिन्हा इसी सिद्धांत पर कार्य करते हुए कम लागत में अधिक उत्पादन कर रहे हैं।
खेती के मुख्य क्षेत्र एवं नवाचार :
श्री सिन्हा ने अपनी 3 एकड़ भूमि में विविध फसलों का उत्पादन करते हुए एक मल्टी क्रॉपिंग मॉडल तैयार किया है।
मुख्य क्षेत्र इस प्रकार हैं, धान उत्पादन पारंपरिक एवं सुगंधित किस्मों का जैविक उत्पादन। कोदो मिलेट उत्पादन: मोटे अनाज को बढ़ावा देकर पौष्टिक आहार को प्रोत्साहन। सब्जी उत्पादन: मौसमी सब्जियों की जैविक पद्धति से खेती। पशुपालन: पाँच देशी गायों से प्राप्त गोबर व गौमूत्र से ‘जीवामृत’ का निर्माण।
जीवामृत – मिट्टी की उर्वरता का प्राकृतिक वरदान :
जीवामृत एक प्राकृतिक उत्प्रेरक (bio catalyst) है, जो मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या और क्रियाशीलता को बढ़ाता है। इससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों का अपघटन तीव्र होता है और फसलों को पोषक तत्वों की पर्याप्त उपलब्धता मिलती है। जीवामृत निर्माण विधि मे 50-60 लीटर पानी में 10 किलोग्राम गोबर और 10 लीटर गौमूत्र मिलाएं। इसमें 2 किग्रा गुड़, 2 किग्रा बेसन तथा 150 ग्राम सजीव मिट्टी डालें। मिश्रण को छांव में रखकर 7-10 दिन तक दिन में दो बार हिलाएं। लगभग 200 लीटर तैयार जीवामृत एक एकड़ भूमि के लिए पर्याप्त होता है। प्रति हेक्टेयर लगभग 500 लीटर जीवामृत का प्रयोग किया जाता है। इसे सिंचाई के पानी में मिलाया जा सकता है या पत्तियों पर छिड़काव किया जा सकता है।
सतत खेती का उत्कृष्ट उदाहरण :
पुरषोत्तम सिन्हा की खेती में रासायनिक उर्वरक या कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता। वे गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नीम तेल, पेंडाल विधि तथा जल संरक्षण तकनीकों का उपयोग कर सतत कृषि मॉडल को साकार कर रहे हैं। उनकी खेतों में धान, कोदो, सब्जियों और दलहनी फसलों का संयोजन “बहुफसली प्रणाली” का जीवंत उदाहरण है, जो भूमि की उत्पादकता और आय दोनों बढ़ाती है।
श्री सिन्हा की मेहनत और नवाचारशील दृष्टिकोण ने उन्हें क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए एक प्रेरणास्रोत बना दिया है। कम लागत, बेहतर उपज और पर्यावरण-संवेदनशील पद्धति अपनाकर उन्होंने साबित किया है कि “प्रकृति के साथ चलना ही स्थायी समृद्धि का मार्ग है।”