महिमा चौधरी ने फिल्मी पर्दे पर ‘किंग खान’ शाहरुख की फिल्म से एक्टिंग डेब्यू किया। इंडस्ट्री में उनकी शुरुआत की राह भले ही आसान रही हो। लेकिन असली जिंदगी में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ब्रेस्ट कैंसर की लड़ाई लड़ चुकी महिमा एक भयानक कार हादसे का शिकार भी रहीं। पति से अलगाव के बाद अपनी बेटी अरियाना की सिंगल पैरेंटिंग एक बड़ी चुनौती रही। लेकिन महिमा ने कभी हार नहीं मानी। इन दिनों वह अपनी नई फिल्म ‘दुर्लभ प्रसाद की दूसरी शादी’ के कारण चर्चा में हैं। फिल्म में उनके साथ संजय मिश्रा हैं। बातचीत में महिमा चौधरी ने फिल्म के अलावा उन भावनात्मक मुद्दों पर भी बात, जिस पर बोलने से सेलेब्स अक्सर बचते हैं। 52 साल की एक्ट्रेस ने यह चाह भी जाहिर की कि वह दूसरी शादी करना चाहती हैं। पढ़िए, महिमा चौधरी का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू-
आप जब अपनी शादी से अलग हुई होंगी, तब आपके लिए वो फैसला कितना मुश्किल था?
बहुत मुश्किल था। मैंने अपने माता-पिता की लंबी शादी देखी थी और उसमें इतना प्रेम था, तो मैं तलाक के बारे में सोचती ही नहीं थी। मैं जब भी किसी के डिवोर्स के बारे में सुनती थी, तो मुझे लगता शायद किसी एक ने इस शादी को बचाने की उतनी कोशिश नहीं की होगी। मैं इनकी जगह होती तो बहुत ट्राई करती। मगर जब मुझ पर बीती तो अहसास हुआ कि जो चीज नहीं चलनी है, कितनी भी कोशिश कर लो, नहीं चलती और अगर कोई चीज चल नहीं रही, तो उसमें सही समय पर फैसला लेकर निकल जाना ही समझदारी होती है। ये आपके लिए भावनात्मक, आर्थिक और मानसिक रूप से सही रहता है।
कभी दोबारा शादी करने के बारे में सोचा आपने?
अभी तक मेरा तलाक नहीं हुआ है। मेरा डिवोर्स पेंडिंग है। मगर दोबारा शादी करने के बारे में बिलकुल सोचती हूं मैं, और अब तो और ज्यादा सोच रही हूं, जबसे मेरी इस फिल्म की शादी वाला फोटो वायरल हुआ है। लोग मेरी दूसरी शादी की उम्मीद कर रहे हैं (हंसती हैं), मैं उन लोगों में से हूं, जो एक बार में हार नहीं मानते। मैं विवाह संस्था में यकीन करती हूं। मेरा मानना है कि दो लोग मिलकर जिंदगी को खुशनुमा बना सकते हैं। यह सपोर्ट सिस्टम जरूरी होता है, होना चाहिए।
तो शादी को लेकर कोई कड़वाहट नहीं आई?
नहीं, मेरी नजर में शादी बेहद जरूरी है। जिंदगी और बच्चों की परवरिश अकेले करना आसान नहीं होता, चाहे बात महिला सिंगल पैरेंट की हो या पुरुष की। अंग्रेजी में एक कहावत है, ‘It takes a village to raise a child’ आज के समय में, जब जॉइंट फैमिली का सपोर्ट भी कम मिलता है, यह और भी सच लगती है। शादी दो लोगों की साझेदारी है, कंपेनियनशिप है और जब दोनों का बैकग्राउंड या जीवन की चाहतें मिलती-जुलती हों, तो रिश्ते को निभाना आसान हो जाता है। जरूरी नहीं कि दोनों एक जैसी पृष्ठभूमि से आएं, लेकिन दोनों की सोच और लाइफ गोल्स एक दिशा में होने चाहिए। कई बार मुश्किलें तब आती हैं, जब एक इंसान रूढ़िवादी हो और दूसरा मॉडर्न या एक बच्चा चाहता हो और दूसरा नहीं। ऐसे मतभेद रिश्ते को जटिल बना देते हैं। इसलिए जो भी शादी करने जा रहे हैं, मेरी एक ही सलाह है। एक-दूसरे की सोच, प्राथमिकताओं और भविष्य की इच्छाओं को जरूर समझ लें। कंपैटिबिलिटी शादी का सबसे मजबूत आधार है।
सिंगल पैरेंट के रूप में आपकी चुनौतियां क्या रहीं?
चुनौतियां तो होती हैं, मगर मेरी बेटी अरियाना अपने ग्रैंड पैरेंट्स के साथ पली-बढ़ी है, तो उसकी इतनी डिमांड्स नहीं होती। बचपन से उसको ऐसा लगता था कि मेरे पास पैसे नहीं हैं। असल में मैं ही उसे समझाया करती थी कि बेटा हम ये नहीं कर सकते, हमारे पास पैसे नहीं है। मुझे याद है, मेरी बेटी काफी छोटी थी। मैं और मेरे फ्रेंड्स एक स्टेशनरी की दुकान पर थे और बातों में मशगूल थे। मेरी बेटी ने उस शॉप पर कुछ चीजें सिलेक्ट कीं, मगर कुछ समय बाद उसने उन चीजों में से दो चीज निकाल दी। अब वो बची हुई चीजों के दाम पूछने लगी। आखिरकार उसने बचे-खुचे सामान में से भी मंहगा सामान हटा दिया। उसके पास सिर्फ दो आइटम बचे। मैंने उससे पूछा कि बाकी का सामान कहां है? वो बोली कि नहीं ठीक है मम्मा, ये काफी है। मैंने उससे कहा कि ले लो बाकी की चीजें भी, तो वो मुझे कोने में ले जाकर, धीरे से फुसफुसाकर बोली, नहीं मम्मा, हमारा पैसा खत्म हो जाएगा। इतना मत खरीदो। तो कहने का मतलब ये है कि वो बचपन से ही ऐसी है, समझदार और संवेदनशील। उसने मुझे कभी किसी मुश्किल सिचुएशन में नहीं पड़ने दिया।
आपके लिए सबसे ज्यादा मुश्किल समय कौन-सा था?
मेरे हिसाब से सबसे ज्यादा मुश्किल समय वही होता है, जब आप हेल्थ प्रॉब्लम से गुजर रहे होते हैं। देखिए, रिश्ते और भावनात्मक रूप की उथल-पुथल से तो हर कोई गुजरता है, मगर सबसे कठिन हिस्सा होता है, आपकी सेहत का और वो भी कैंसर जैसी बीमारी का। मैं कैंसर से जूझ रही थी। लॉकडाउन भी था। मेरी मम्मी की हेल्थ भी ठीक नहीं थी और मेरे पापा भी बीमार थे। मैं तो हर किसी के लिए अच्छी सेहत की ही कामना करती हूं, बाकी सब तो आप झेल ही लेते हैं। उस वक्त मेरा परिवार ही मेरा सबसे बड़ा संबल बना।
कैंसर की जंग से पहले 1999 में आप एक भयानक एक्सीडेंट से भी गुजरीं?
हां, वो तो बहुत ही भयावह था। तब मैं काफी यंग थी। ये वो उम्र होती है, जब आप कुछ बनना चाहते हैं, कुछ करना चाहते हैं। आपकी पहली फिल्म ‘परदेस’ रिलीज हो चुकी थी। दूसरी फिल्म भी हिट थी और अचानक एक सड़क हादसे में मेरे चेहरे पर 67 कांच के टुकड़े घुस गए। मेरे पिता ने जब मेरा चेहरा देखा, तो इतना ही बोल पाए कि और कहीं चोट नहीं आई, चेहरे पर इतनी भयानक चोट। कम उम्र में ये सारी चीजें बहुत ही बुरा असर डालती हैं। जब मुझे ब्रेस्ट कैंसर डायग्नोज हुआ था, तब तक मैं थोड़ी मच्योर हो चुकी थी, मगर उस हादसे में मैं पूरी तरह से टूट गई थी।
‘दुर्लभ प्रसाद की दूसरी शादी’ जैसी फिल्म से जुड़ने का खास कारण?
सबसे पहले तो मुझे इसका शीर्षक ही कमाल का लगा। इसका कॉन्सेप्ट मुझे काफी प्यारा लगा। फिर मुझे बताया गया कि ये दुर्लभ प्रसाद हैं, संजय मिश्रा जी, जो ये रोल निभाने जा रहे हैं। मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं इनके साथ ऐसा कोई किरदार निभाऊंगी। मैं काफी एक्साइटेड हो गई थी। लोगों के लिए भी ये पेयरिंग अनयूजवल है। लोगों के लिए ये दिलचस्प तो हैं, मगर साथ ही वे इसे स्वीकार करने के लिए भी तैयार हैं।