अमेरिका को पोर्ट, रेअर अर्थ… चीन को छोड़ अमेरिका के पाले में कूदा पाकिस्तान, बलूचिस्तान बनेगा जंग का मैदान? भारत की बढ़ेगी टेंशन

इस्लामाबाद: पाकिस्तान को चीन से दूर करने की अमेरिका की कोशिशें फिलहाल कामयाब होती दिख रही हैं। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अपनी हालिया अमेरिका यात्रा और उससे पहले जून में पाक सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने वॉशिंगटन के दौरे पर डोनाल्ड ट्रंप की खुशामद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुनीर की ओर से नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ट्रंप का नाम पेश किया गया तो शरीफ ने भारत के साथ सीजफायर का श्रेय अमेरिकी प्रेसिडेंट को दिया है।

शहबाज शरीफ और असीम मुनीर का हाइब्रिड शासन अमेरिका के सामने उसी तरह के सौदे पेश कर रहा है, जो उसने कभी चीन के सामने रखे थे। अमेरिका को खुश करने के लिए पाकिस्तान ने फिलिस्तीन पर अपने ‘सैद्धांतिक’ रुख को त्यागकर ‘अब्राहम समझौते’ का हिस्सा बनने के संकेत दिए हैं, जो इजरायल को मान्यता देता है। पाकिस्तान ने सऊदी अरब के साथ रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं ताकि दोनों देश इस मुद्दे पर एकमत हो सकें और सऊदी शाही परिवार को प्रतिक्रिया से बचाया जा सके।

गाजा डील पर शरीफ का उत्साह

ऐसा लगता है कि ट्रंप की गाजा योजना का समर्थन करने से पहले शरीफ ने प्रस्तावित समझौते के प्रावधानों की बारीकियां नहीं देखीं। इनमें कुछ को फिलिस्तीनी हितों के खिलाफ माना जा रहा है। यह समर्थन पाकिस्तान में आश्चर्य के रूप में आया। यही कारण है कि शरीफ पर फिलिस्तीनी हितों की कीमत पर अमेरिकियों को खुश करने की कोशिश करने का आरोप लगा है। इसके चलते विदेश मंत्री इशाक डार को कहना पड़ा कि उन्हें दिखाई गई शांति योजना के प्रावधानों में बदलाव किया गया और शरीफ उनको नहीं पढ़ सके।

अमेरिका और पाकिस्तान में बलूचिस्तान के खनिज तत्वों और बंदरगाह को लेकर बातचीत चल रही है। पाकिस्तान ने ग्वादर के पास अरब सागर में पासनी में नया बंदरगाह बनाने की पेशकश अमेरिका को दी है। इससे अमेरिका को रणनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में मजबूत पैर जमाने का मौका मिलेगा। बलूचिस्तान में पासनी ईरान से केवल 100 मील और चीन के निवेश से बनी ग्वादर बंदरगाह से 70 मील दूर है। प्रस्तावित बंदरगाह को संबंधों को रफ्तार देने के लिए रेलवे नेटवर्क से जोड़ा जाएगा।

खनिज संसाधनों का लालच

पाकिस्तान के पास विशाल खनिज संसाधन होने की बात एक्सपर्ट मानते हैं। खासतौर से बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में ये संसाधन हैं, ये दोनों ही अशांत सूबे हैं। मुनीर अपने साथ दुर्लभ खनिजों के नमूने लेकर अमेरिका गए थे। उन्होंने शरीफ की मौजूदगी में ट्रंप और अमेरिकी अधिकारियों को ये खनिज दिखाए। इसकी आलोचना करते हुए अब्दुल गफ्फार खान के परपोते सीनेटर ऐमल वली खान ने कहा कि मुनीर सेल्समैन और शरीफ शोरूम के मैनेजर की तरह ट्रंप के सामने थे। ट्रंप की गाजा योजना पर समर्थन के लिए भी उन्होंने शरीफ को घेरा है।

अहम सवाल यह है कि मुनीर और शरीफ अमेरिका से इतनी बेताबी से क्यों मिल रहे हैं। ऐसा लगता है कि यह हाइब्रिड शासन अमेरिका को अपने साथ चाहता है क्योंकि उसके पास घरेलू वैधता का अभाव है। शहबाज और पाक आर्मी पर लगातार यह आरोप लगता रहा है कि चुनाव निष्पक्ष नहीं था। जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को पाकिस्तान का सबसे लोकप्रिय नेता माना जाता है। चुनाव में भी इमरान खान का दबदबा दिखा था। ऐसे में मुनीर और शहबाज चाहते हैं कि इमरान खान जेल में ही रहें।

चीन-ईरान को भड़काएंगे ये कदम!

मुनीर और शरीफ ने बलूचिस्तान में अमेरिकी कंपनियों को अनुमति देने के घरेलू और क्षेत्रीय परिणामों पर गंभीरता से विचार नहीं किया है। चीन ने अभी तक इन घटनाक्रमों पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि यह तय है कि अपनी सीमा के करीब अमेरिका की संभावित मौजूदगी चीन को नाराज करेगी। इसीलिए उसने अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस को वापस लेने के अमेरिकी प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ये क्षेत्रीय तनाव पैदा करने की कोशिश है।

चीन के लिए मुद्दा यह होगा कि चीनी हितों के लिए सुरक्षा स्थिति में सुधार करने के बजाय पाकिस्तान अमेरिका को इस क्षेत्र में घुसाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अपने लोगों के लिए सुरक्षा की मांग को अनसुना कर दिया है। चीन के अलावा ईरान भी नाराज होगा, क्योंकि वह पहले ही अमेरिका के निशाने पर है। अफगान तालिबान हालांकि वॉशिंगटन से बातचीत के खिलाफ नहीं है लेकिन अमेरिकियों की अपनी जमीन पर वापसी का कड़ा विरोध कर रहा है।

खतरनाक रास्ते पर मुनीर-शरीफ

मुनीर और शरीफ जो प्रस्ताव अमेरिका को दे रहे हैं, उससे पाकिस्तान का कोई पड़ोसी खुश नहीं होगा। पड़ोसी ही नहीं बल्कि खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में भी इससे गुस्सा बढ़ेगा। पाकिस्तानी सेना को समझना चाहिए कि खैबर पख्तूनख्वा में पहले ही युद्ध जैसे हालात हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) लगातार प्रांत में हिंसा कर रहा है।

बलूचिस्तान में अलगाववादी अमेरिका को अपने संसाधनों के दोहन की इजाजत नहीं देंगे। वह इसी मुद्दे पर अपने क्षेत्र में चीनियों को निशाना बना रहे हैं। इससे पता चलता है कि मुनीर और शरीफ एक खतरनाक रास्ते पर हैं। यह बलूचिस्तान और केपी को भारी अस्थिरता और अमेरिका-चीन के बीच छद्म संघर्ष का मैदान बना सकता है। यह ना सिर्फ पाकिस्तान बल्कि भारत और दूसरे पड़ोसियों के हितों के लिए भी हानिकारक होगा।

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