नई दिल्ली: हेवी रेयर अर्थ मैग्नेट यानी भारी दुर्लभ पृथ्वी चुंबक (heavy rare earth magnets) को लेकर चीन ने भारत के सामने अजीब शर्त रख दी है। चीन ने कहा है कि वह इस मैग्नेट को भारत को तभी बेचेगा जब गारंटी मिले कि भारत इसे अमेरिका को दोबारा नहीं बेचेगा। इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक चीन चाहता है कि इस मैग्नेट का इस्तेमाल भारत सिर्फ अपनी जरूरतों के लिए करे। भारतीय कंपनियों ने एंड-यूजर सर्टिफिकेट (end-user certificates) जमा किए हैं, जिनमें कहा गया है कि ये चुंबक किसी भी तरह के सामूहिक विनाश के हथियार बनाने में इस्तेमाल नहीं होंगे
क्यों मांगी यह गारंटी?
चीन ने निर्यात नियंत्रण गारंटी की मांग की है, जो वासेनार व्यवस्था (Wassenaar Arrangement) के समान हो। चीन इस समझौते का सदस्य नहीं है। यह समझौता 42 सदस्य देशों के बीच दोहरे उपयोग वाली तकनीकों और सामानों के हस्तांतरण में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ावा देता है, ताकि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा बनी रहे। भारत इस समझौते का सदस्य है।
सरकार ने अभी स्वीकार नहीं की मांग
एक सूत्र ने बताया कि चीन यह सुनिश्चित करना चाहता है कि भारत को भेजे गए भारी दुर्लभ पृथ्वी चुंबक अमेरिका तक न पहुंचें। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय सरकार ने अभी तक इस मांग को स्वीकार नहीं किया है। एक और सूत्र ने बताया, ‘हमारी समझ यह है कि चीन भारी दुर्लभ पृथ्वी चुंबकों पर अमेरिका के साथ किसी तरह के समझौते पर विचार कर रहा है और बिना इस गारंटी के कि माल कहीं और नहीं जाएगा, वह आपूर्ति जारी करने को तैयार नहीं है।’
चीन की कितनी हिस्सेदारी?
चीन दुनिया के 90% भारी दुर्लभ पृथ्वी चुंबकों का उत्पादन करता है। उसने इन सामग्रियों के निर्यात से संबंधित देश-विशिष्ट डेटा को सार्वजनिक करना बंद कर दिया है। बीजिंग वॉशिंगटन के साथ अपनी व्यापार वार्ता में दुर्लभ पृथ्वी आपूर्ति श्रृंखला पर अपने दबदबे का फायदा उठाना चाहता है
हल्के मैग्नेट की आपूर्ति शुरू की
31 अगस्त से 1 सितंबर तक हुए शंघाई सहयोग शिखर सम्मेलन (Shanghai Cooperation Summit) के बाद चीन ने भारत को हल्के दुर्लभ पृथ्वी चुंबकों (light rare earth magnets) की आपूर्ति फिर से शुरू कर दी है। लेकिन भारी दुर्लभ पृथ्वी चुंबकों की आपूर्ति में कमी बनी हुई है। इससे भारत में बड़े इलेक्ट्रिक तिपहिया वाहनों, कारों, ट्रकों और बसों के लिए मोटर के विकास में बाधा आ रही है।