नई दिल्ली: देशभर की महिला किसानों ने मिलकर 'मिलेट सिस्टर्स नेटवर्क' बनाया है। यह नेटवर्क मिलेट्स (बाजरा) की खेती के जरिये महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बना रहा है। इस नेटवर्क की संस्थापक सरस्वती मल्लुवलासा हैं। उन्होंने आंध्र प्रदेश से इसकी शुरुआत की। नेटवर्क में लगभग 2,000 महिला किसान शामिल हैं। ये महिलाएं जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों से जूझते हुए मिलेट की खेती के जरिए नया जीवन ढूंढ रही हैं। उन्होंने 'मिलेट सीजन' की शुरुआत की है। यह नेटवर्क अब 15 राज्यों में फैल गया है। इसमें ओडिशा का 'निर्माण', डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी और तेलंगाना का 'पिलुपु' जैसे संगठन शामिल हैं। मिलेट सिस्टर्स नेटवर्क महिलाओं के लिए बेहतर दाम, सब्सिडी और महिला बैंक जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध करा रहा है। विशाखापत्तनम में उन्होंने एक पूरी तरह से महिला पंचायत भी स्थापित की है। इस नेटवर्क को CEEW ने सम्मानित किया है। आइए, यहां मिलेट सिस्टर्स नेटवर्क की सफलता के सफर के बारे में जानते हैं।ऐसे हुई शुरुआत
सरस्वती मल्लुवलासा ने महिलाओं से बातचीत के बाद यह नेटवर्क शुरू किया। उन्होंने पाया कि मिलेट, बीज और पैसों पर पुरुषों का ज्यादा नियंत्रण होता है। सरकारी योजनाओं में भी महिलाओं को किसान के रूप में मान्यता नहीं मिलती। मल्लुवलासा और दूसरी महिलाएं घर-घर जाकर मिलेट्स के बारे में बात करने लगीं। इससे महिला किसानों को आय का एक जरिया और बेहतर पोषण मिला। साथ ही, इससे पर्यावरण को भी फायदा हुआ। मल्लुवलासा बताती हैं, 'जब हमने नेटवर्क शुरू किया, तब हम जलवायु परिवर्तन पर बात करते थे। लेकिन, अब हम इसके बुरे प्रभाव झेल रहे हैं। बारिश का मौसम लगभग गायब हो गया है। चक्रवातों के कारण बेमौसम बारिश होती है और बाकी समय सूखा पड़ता है।'
15 राज्यों में फैला नेटवर्क
इस समस्या से निपटने के लिए मिलेट सिस्टर्स ने 'मिलेट सीजन' की शुरुआत की। यह खरीफ और रबी के बाद का एक छोटा खेती का चक्र होता है। इससे वे मौसम की मार से बच जाती हैं और कुपोषण से भी लड़ पाती हैं। जब उन्हें इस तरीके से सफलता मिलने लगी तो मल्लुवलासा और दूसरी महिलाओं ने दूसरे राज्यों के किसानों और NGO से बात की। इस तरह उनका नेटवर्क आंध्र प्रदेश के बाहर भी फैल गया। आज मिलेट सिस्टर्स नेटवर्क में 15 राज्यों की छोटी महिला किसान शामिल हैं। ओडिशा का 'निर्माण', डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी और तेलंगाना का 'पिलुपु' जैसे संगठन भी इसमें शामिल हैं।
मिलेट अपनाने के लिए किया जागरूक
ये महिलाएं किसान संगठनों, खाद्य उत्सवों, कार्यशालाओं और सामुदायिक कार्यक्रमों के जरिये लोगों को जागरूक करती हैं। लोगों को पौष्टिक भोजन के अधिकार, सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और स्थायी आजीविका के बारे में बताती हैं। उन्होंने सार्वजनिक खाद्य प्रणालियों में मिलेट को शामिल करने के लिए नीतिगत समर्थन भी हासिल किया है। मिलेट सिस्टर्स ने खेती का चेहरा बदलने के साथ महिलाओं को सशक्त भी बनाया है। जोगी नायडू सारदा वैली डेवलपमेंट समिति के सचिव हैं। यह समिति विशाखापत्तनम में कमजोर महिला किसानों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए काम करती है। यह समिति नेटवर्क के मूल संगठनों में से एक थी और नायडू मल्लुवलासा के मेंटर रहे हैं। नायडू कहते हैं कि नेटवर्क के माध्यम से महिलाओं को एहसास हुआ कि आर्थिक सुरक्षा ही सामाजिक उत्थान की कुंजी है। उन्होंने बेहतर दाम और सब्सिडी के लिए सौदेबाजी की और एक महिला बैंक की स्थापना की। विशाखापत्तनम में उन्होंने एक पूरी तरह से महिला पंचायत भी स्थापित की, जहां किसी भी पुरुष को सदस्यता या निर्णय लेने में कोई अधिकार नहीं था।
कॉर्पोरेट के दबदबे को चुनौती
मल्लुवलासा का कहना है कि आजकल जलवायु परिवर्तन पर ज्यादातर चर्चाएं 'शहरी-केंद्रित' होती हैं। ऐसे में उनका नेटवर्क विकेन्द्रीकृत ऐक्शन का एक मॉडल पेश करता है। वह कहती हैं, 'पिछले 3-4 सालों में मिलेट बहुत आगे बढ़ा है। लेकिन, अब बड़ी कंपनियां इसका फायदा उठा रही हैं। उन लोगों का क्या होगा जो दशकों से इसे उगा रहे हैं?' कंपनियों के इस दबदबे से ध्यान हटाने के लिए CEEW ने इस नेटवर्क को सम्मानित किया है।