जस्टिस ट्रूडो के कारण भारत-कनाडा के बीच तल्खी, अब आगे क्या होगी नई दिल्ली की रणनीति?

नई दिल्ली: कनाडा और भारत के दर्मियान हुए हालिया घटनाक्रम के बाद दोनों देशों के बीच पनपी राजनयिक तल्खी जल्दी खत्म होती नहीं दिखती। भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान से ये साफ किया है कि वो इस मसले पर आगे और कदम उठाने के लिए स्वतंत्र है तो दूसरी ओर कनाडा की ओर से भी इसी तरह के संकेत मिले हैं कि फिलहाल रिश्ते किसी भी दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। आइये जानने की कोशिश करते हैं कि डिप्लोमैटिक रिश्तों के दायरे के भीतर दोनों देशों के पास क्या संभावनाएं हैं । पिछले एक साल से ट्रूडो जिस तरह भारत सरकार पर आरोप लगा रहे हैं, उससे इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि कनाडा इस मामले को और आगे लेकर नहीं जाएगा।

आर्थिक प्रतिबंधों का सवाल ?

कनाडाई विदेश मंत्री विदेश मंत्री मिलोनी जोली ने भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों को लेकर कहा कि सब कुछ टेबल पर है...यानि कनाडा ने अपने विकल्प खुले रखे हैं। विदेश मामलों के जानकार राजीव डोगरा कहते हैं कि कनाडा के साथ हमारे व्यापारिक संबंध बहुत बड़े लैंडस्केप पर नहीं है और अगर कनाडा इकोनॉमिक प्रतिबंध लगाएगा भी तो इससे भारत से ज्यादा कनाडा के एक्सपोर्टर्स को ही नुकसान होगा। तो वहीं विदेशी मामलों के जानकार प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं कि अगर ट्रूडो सरकार किसी तरह के आर्थिक प्रतिबंध भारत के खिलाफ लगाने की कोशिश करती है तो इसका दायरा जी 7 तक जा पाएगा , ऐसा लगता नहीं क्योंकि जिस तरह से इस ग्रुप में पीएम मोदी को शिखर सम्मेलनों के साथ आमंत्रित किया जाता है, उससे लगता नहीं कनाडा के पास किसी भी साथी देश का समर्थन है, इससे साफ है कि अगर प्रतिबंध लगते हैं तो वो सिर्फ कनाडा- भारत व्यापारिक संबंधों तक ही सीमित रहेगा। जानकार कहते हैं कि अगली रणनीति में कनाडा वहां पढ़ रहे छात्रों की संख्या में कमी कर सकता है, लेकिन वो पहले से ही आधे रह गए हैं और अब वो दूसरी डेस्टिनेशन्स की ओर जा रहे हैं। खासतौर से जिस तरह से डिप्लोमैटिक अधिकारियों की संख्या कम की गई है, ऐसे में आशंका है कि कनाडा के लिए और सीमित संख्या में वीजा जारी हो सकते है। इससे कनाडा पढ़ने जाने वाले स्टूडेंट्स के लिहाज से भारत को नुकसान हो सकता है।

विएना कन्वेनशन का जिक्र क्यों?


कनाडा की ओर से मंगलवार को विएना कन्वेशन का जिक्र किया गया है, तो सवाल है कि क्या ऐसे में मामले को वो अंतराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की कोशिश कर सकता है? इसे लेकर राजीव डोगरा कहते हैं कि कनाडा ने खुद ही विएना कन्वेशन के सारे नियम तक पर रख दिए हैं। क्योंकि कन्वेंशन के मुताबिक राजनयिकों को इम्युनिटी मिली होती है और उन्हें लीगल प्रक्रिया में घसीटा नहीं जा सकता। ऐसे में किस आधार पर इस मामले को उठा सकते हैं। वहीं प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं कि जिस तरह का गैर जिम्मेदार अप्रोच कनाडा ने अब तक दिखाई है, उससे लगता नहीं कनाडा खुद ऐसे मामलों को उस स्तर पर उठाने का सोचेगा भी।

जी- 7 और फाइल आईज के पास शिकायत?


कनाडा सरकार की ओर से कहा गया है कि इस मामले को लेकर वो फाइव आईज और जी- 7 तक लेकर जाएगा। इस दिशा में पीएम ट्रूडो ने सोमवार को ब्रिटेन के पीएम के साथ चर्चा भी की है। हालांकि जानकार मानते हैं कि पिछले साल भी ट्रूडो ने इसी रणनीति पर काम किया था लेकिन इसका कोई फायदा हुआ नहीं। स्वर्ण सिंह कहते हैं कि जी सेवन समिट अगले साल कनाडा में होना है और अगर भारत विशेष आमंत्रित सदस्य की तरह अगर वहां जाने का फैसला ले तो क्या कनाडा की छवि के लिए लिए सही होगा ? जानकार मानते हैं कि बतौर ग्रुप ब्रिक्स की प्रतिष्ठा लगातार बढ़ रही है और ऐसे में चुनौतियों से घिरा जी - 7 भारत जैसी आर्थिक शक्ति को नाराज नहीं करना चाहेगा।

भारत वेट एंड वॉच करेगा, उसके लिहाज से प्रतिक्रिया देगा


जानकार कहते हैं कि कनाडा की ओर से अब तक बेतुकी बयानबाज़ी , खासतौर से खुद वहां के पीएम की ओर से बिना तर्क के आरोप सामने आए हैं। लेकिन भारत में सरकार के शीर्ष स्तर पर खामोश रहकर एक्शन ओरिंइटेड अप्रोच के साथ काम किया गया है। भारत ने पिछले साल 41 कनाडाई राजनयिकों को देश छोड़ने के लिए कहा था और अब 6 को निष्कासित किया है। ऐसे में भारत की अप्रोच एक्शन ओरिटेंडेट रही है। भारत ने कनाडा की आक्रामक भाषा का शालीनता के साथ कड़ा जवाब दिया है। ऐसे में लगता नहीं कि अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी कनाडा के पीछे सपोर्ट में आएगी। पिछली बार भी अमेरिका ने कुछ हद तक इस मामले में कनाडा के साथ इंगेज किया था, बाकी देशों ने इस तरह वोट बैंक वाली राजनीति पर कुछ बोलने से दूरी बनाई थी

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